दरारों के पार
(Beyond the Cracks- Hindi) मेरे कप में पड़ी दरारें मुझे एहसास कराती हैं... ...कि हर दरार, एक बीता लम्हा, एक जिया हुआ दिन, जो कभी गरम चाय सा उबला, तो कभी ठंडी खामोशी में भीग गया। ज़िंदगी भी तो ऐसी ही होती है ना, हर रोज़ इस्तेमाल होती है, कभी थकती नहीं, चाहे उसमें कितनी ही बार दरारें क्यों न पड़ी हों। कोई नहीं पूछता कि कितनी बार टूटी, कितनी बार खुद को समेटा, कितनी बार खुद को धोकर फिर से तैयार किया, बस ये देखा जाता है कि आज फिर क्या वो मुस्कराकर सामने आई या नहीं। वक़्त की गर्माहट, हालातों की तपिश, रिश्तों की भीगती शामें, सबने मिलकर इसे कुछ ना कुछ दिया है। और वो सब इन दरारों में कैद है, बिना शोर, बिना शिकायत। अब लगता है, दरारों का होना टूटने की निशानी नहीं, बल्कि जीने का सबूत है। हर निशान कहता है, 'मैं आज भी यहाँ हूँ, टूटा हूँ, मगर थमा नहीं, घिसा हूँ, मगर रुका नहीं।' ज़िंदगी- एक पुराना कप है शायद, जिसमें हर सुबह की चाय बस यूँ ही नहीं बनती, वो दरारों से होकर ही अपना स्वाद पाती है। - तरुणा घेरा 🤍 Beyond the Cracks (English translation) The cracks in my cup remind me......